ईमानदारी
अब कीमत चुकाती है ,
बीच सड़क पर
क़त्ल होती है वह
व्यवस्था आँख मूँद कर चली जाती है !
अब कीमत चुकाती है ,
बीच सड़क पर
क़त्ल होती है वह
व्यवस्था आँख मूँद कर चली जाती है !
ईमानदारी
अब सबको डराती है,
दिन के उजाले में भी
स्याह*अँधेरा लाती
सूरज की रोशनी शर्माकर चली जाती है !
ईमानदारी
अब कहर ढाती है,
भरे-पूरे परिवार को
जड़ से तबाह कर
सांत्वना दिलाकर चली जाती है !
ईमानदारी
सपने नहीं दिखाती है ,
किताबों में रहकर
पन्ने-पन्ने नुचकर
नारों (नालों) में बहकर चली जाती है !
….इतना होते हुए भी वह
ईमानदारी को बचाये हुए है,
भौतिकता को छोड़कर
केवल अपनी आत्मा के साथ
गठबंधन निभाए हुए है !!
विशेष: बंगलौर में शहीद हुए ईमानदार अधिकारी महंतेश को समर्पित !