कब तक सोखेगी धरा, धूप हुई हलकान ।।
पढ़-लिख काया बदल ली,बदले नहीं विचार ।
कौआ कोयल-भेष में,करता शिष्टाचार ।।
शब्द अर्थ को खो रहे,भटक रहे हैं छंद।
लिखते कुछ,होते अलग,ब्लॉगर-लेखक-वृन्द ।।
तुलसी इस संसार में ,वही बड़ा विद्वान।
खड़ी फ़सल में आग दे,बोए निज अभिमान ।।
लिपा-पुता चेहरा दिखे,भोला-सा इन्सान ।
जेबों में मक्कारियाँ ,कर देती हैरान ।।
सूरत धोखा दे रही,संबंधों में खोट ।
रिश्तों में चालाकियाँ ,देती गहरी चोट ।।
पाहुन सावन की तरह,भूले अपना देश ।
मेघ-डाकिया बाँटता ,नित झूठे सन्देश ।।