करीब दस रोज़ पहले
सतीश सक्सेना जी से बात हुई और तय हुआ कि उनके दिल्ली-आवास पर मुलाक़ात हो.इस मुलाक़ात की फौरी वज़ह तो उनकी पहली कृति को हासिल करना था,पर पहली बार मिलने का उल्लास भी था.सतीशजी ने बकायदा समझा दिया ताकि हमें उन तक पहुँचने में कोई दिक्कत पेश न हो.आखिर तय-समय पर मैं उनके आवास पर पहुंचा तो बिना किसी औपचारिकता के उन्होंने गले लगाया.ऐसा लगा ही नहीं कि यह हमारी पहली भेंट हो !
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सप्रेम-भेंट |
हमने ब्लॉगिंग के वर्तमान घटनाक्रम पर खूब चर्चा की.इस बीच चाय-पानी भी होता रहा.उनके अतिथि-कक्ष में रखा निकॉन का बड़ा कैमरा मुझे बहुत आकर्षित कर रहा था.अचानक सतीश जी अपने इस प्रिय हथियार को लेकर मुझ पर ताबड़तोड़ टूट पड़े.मैं हतप्रभ,गोया सेलिब्रेटी हो गया होऊँ ! इत्ते फोटू खींचे कि मेरी सारी परदेदारी उजागर हो गई.चित्रों में मेरे उड़े हुए बाल अचानक मेरे उम्रदराज़ हो जाने की चुगली करने लगे थे.कुछ चित्र वाकई खूबसूरत थे.जब उनकी बहू आ गई तो हम दोनों ने एक साथ फोटो खिंचाई.सतीशजी ने चालाकी से अपना चश्मा यह कहकर हटा लिया था कि इससे ज़रा बुजुर्गियत झलकेगी !!
बहरहाल,अब बात असल मुद्दे की. उन्होंने हाल ही में ‘ज्योतिपर्व प्रकाशन ‘ से छपा अपना पहला काव्य-संग्रह ‘मेरे गीत’ मुझे भेंट किया .मैंने सरसरी तौर पर वहीँ इस पुस्तक को देखा और उनसे यह आग्रह भी किया कि इसमें से वे अपनी पसंद का एक गीत सुनाएँ.वे सहज भाव से इसके लिए राज़ी हो गए और मैंने अपने मोबाइल से उस दृश्य को कैद कर लिया.’मेरी रचना क्यों लिखी गई’ कविता को उन्होंने हमें गाकर सुनाया.
घर आकर जब इस संकलन को पढ़ना शुरू किया तो सबसे ज़्यादा प्रभावित किया सतीशजी की भूमिका ने | माँ को बिलकुल बचपन में खोने का दर्द वही जान सकता है जिसके ऊपर ऐसा पहाड टूटा हो.लगता है,सतीश जी को दर्द का जो घूँट तब मिला ,वही अब कविता का सागर बन के निकल रहा है.उन्होंने भूमिका में कई जगह इस बात को रेखांकित किया है.माँ की तड़प को उन्होंने कितनी शिद्दत से महसूस किया है:
कई बार रातों में उठकर,
दूध गरम कर लाती होगी,
मुझे खिलाने की चिंता में
खुद भूखी रह जाती होगी,
मेरी तकलीफों में अम्मा,सारी रात जागती होगी |
और यह देखिये:
एक दिन सपने में तुम जैसी
कुछ देर बैठकर चली गईं ,
हम पूरी रात जाग कर माँ
बस तुझे याद कर रोये थे !
ऐसी रचनाओं को पढ़ते-पढ़ते दिल भर आता है.बिलकुल दर्द को कविता बनाकर कागज पर उतार दिया है !इस संग्रह में माँ को समर्पित कई रचनाएँ हैं |कवि ने अपने गीतों में अपने दर्द के अलावा अपनों के प्यार का भी इज़हार किया है.इसमें बेटी,बहू और पत्नी पर आधारित संस्मरणात्मक रचनाएँ हैं.जहाँ एक तरफ कवि के जीवन में माँ का अभाव खटकता है,वहीँ बाद में पत्नी,पुत्र,पुत्री और बेटी ने उसके जीवन में ऊर्जा का संचार कर दिया है.इस लिहाज़ से ‘मेरे गीत’ की रचनाएँ कवि के अपने जीवन के इर्द-गिर्द अनुभव किये जाने से उपजी हैं.इनमें काल्पनिकता के बजाय यथार्थ का पुट ज़्यादा है |
पत्नी को समर्पित एक हास्य-रचना देखिये:
जब से ब्याही हूँ साथ तेरे
लगता है मजदूरी कर ली,
बरतन धोए,घर साफ करें
बुड्ढे -बुढिया के पैर छुए
जब से पापा ने शादी की,फूटी किस्मत अरमान लुटे,
जब देखो तब बटुआ खाली,हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
अपने पारिवारिक जीवन से इतर सामान्य जीवन,हास्य और प्यार पर भी रचनाएँ हैं,पर हमें उनकी दर्द से भरी रचनाएँ ज़्यादा प्रभावित करती हैं.कविताओं में संवेदनशीलता और सरोकार का अहसास होता है.इनमें कुछ बाल कवितायेँ भी हैं.कवि का पहला संग्रह है,इस नाते कविताओं के चयन में थोड़ा चूक हुई है.इनमें गंभीर कविताओं के बीच बिलकुल हल्की रचना अखरती है.इन्हें या तो अलग से स्थान दिया जाता या इसी संग्रह में देना ज़रूरी था तो अलग सेक्शन बनाया जा सकता था.
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फोटोग्राफिक हुनर |
बहरहाल,कवि को उसके पहले संग्रह की ढेर सारी बधाई और मित्रों से यह अनुशंसा कि इस संकलन को अवश्य पढ़ें !
और हाँ,ऑडियो की खराबी के बावजूद सतीश जी को वीडियो में देखें और सुनें !
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गीतों की संभवतः पहली समीक्षा …. पहले सतीश जी का व्यक्तित्व और आपकी कलम , दोनों की अपनी गरिमा है . तो इस गरिमा से जो गीत लिखे गए हैं , आपकी कलम ने उन्हें स्वर सा दे दिया है ………… मैं भी पढ़ रही हूँ धीरे धीरे .
विडियो देखा , आवाज़ बहुत कम है
@ 'उन्होंने बिना किसी औपचारिकता के गले लगाया' मतलब क्या औपचारिकतायें चाहते थे आप 🙂 @ निकान चश्म से चश्मा उतारा और बनके नौजवां बैसवारी को जताया , खींच फोटो बुज़ुर्गदां@ मां को समर्पित गीत ,सादर !@ पत्नि को समर्पित गीत , बात तुम्हारी क्यों मानेसतीश जी बहुतै हुसियार हैं ,ये उनकी कालजयी रचना है !
वाह क्या बात है. पढ़ कर अच्छा लगा.
वाह … सतीश जी से एक बार मिलना हुवा है और आज तक उनके मधुर हास्य वाला चेहरा ताज़ा रहता है आँखों के सामने … अओका मिलन यादगार रहा जान के आनंद आया … उनके गीतों का मज़ा ले रहा हूँ …
गीतकार सतीश जी की यह 'मेरे गीत' मनोरम है। आपका यह मिलन सह समीक्षा भी अतिसुन्दर।सतीश जी को ढ़ेरों बधाईयां!!
सतीश जी के ब्लॉग में नियमित जाना होता है… उन्हें पढ़ना हमेशा सुखद होता है…बहुत ही बढ़िया समीक्षा की है संतोष त्रिवेदी जी आपने… जल्द ही पुस्तक पढने की कोशिश करूँगासुन्दर समीक्षा के लिए हार्दिक बधाई…..!! @ संजय भास्कर
वीडियो की आडिओ क्वालिटी बहुत ख़राब है कृपया इसे हटा लें …यह कृति की समीक्षा है या आपकी जोरदार फोटो की पेशकश या फिर एक वीडियों की ठेलम ठेल …क्या है ये ….बस चू चू का मुरब्बा ….बस उसी अंश के कारण यह पठनीय है जहां आपने गीतों पर कुछ तप्सरा पेश किया है !
पढ़ने की इच्छा बढ़ती ही जा रही है।
यह बात तो मान गया संतोष जी कि आप दिल की गहराई से लिखते हैं। इतनी बढ़िया समीक्षा भावनाओं में डूबा कोई दिलदार ही लिख सकता है। ऑडियो में आपकी आवाज सुनाई देती है उनकी नहीं जिनका आपने साक्षात्कार लिया। अच्छा तो यह होता कि सतीश जी से आप एक गीत की भीडियो रिकार्डिंग उनके बढ़िया कैमरे से ई मेल से मांग लेते और वह यहाँ लगा लेते। अभी भी चेंज कर सकते हैं। आपके थैंक्यू के अलावा कुछ साफ सुनाई नहीं दे रहा।अच्छा यह भी होता कि उनका वह बढ़िया वाला कैमरा उड़ा कर उसे बनारस कूरियर कर देते। उस कैमरे पर मेरी भी नज़र है।:)पुस्तक अभी मेरे हाथ नहीं लगी, प्रतीक्षा में हूँ।
मास्साब समीक्षा भी इतनी बेहतर करते हैं। गीत भी लिखते हैं। गद्य भी लिखते हैं। मन से जुड़कर सबको जीवंत कर देते हैं। बधाई सतीश जी के 'मेरे गीत' जो सबके गीत बन गए हैं और संतोष जी के जरिए सबके मन को हिलोरें दे रहे हैं।
संतोष जी,,,आखिर आपने सतीश जी पुस्तक "मेरे गीत" को हासिल कर ही लिया,आपके द्वारा मेरे गीत की समीक्षा मुझे तो बहुत अच्छी लगी,वीडियो में आनंद नही आया,कुल मिलाकर बहुत बढ़िया प्रस्तुति,,,,,,
सतीश भाई की "मेरे गीत" के सारे के सारे गीत एक से बढ़कर एक हैं…. मैंने तो जब उनके सामने "मेरे गीत" खोली तो जो गीत सामने आया, पढकर मज़ा आ गया… और उससे भी बढ़कर फिर खुद उन्होंने वह गीत मुझे और खुशदीप भाई को पढकर सुनाया… रिपोर्ट पढकर और फोटो देखकर ही अंदाजा हो रहा है कि यह ब्लोगर्स मिलन बढ़िया रहा!!!!!
बढिया !!
सतीश जी को बधाई। प्रकाशक को भी एक बेहतरीन प्रकशकीय पुस्तक के लिए।सतीश जी ने पुस्तक मुझे भी भेंट की है। इस सप्ताहांत में उसे राजभाषा पर लाने का प्रोग्राम है।
गुरूजी,ऑडियो की क्वालिटी ठीक नहीं है,लेकिन यह सतीशजी का दुर्लभ वीडियो है,इसलिए इसे लगा दिया है.मैंने उनका खैंचा हुआ एक ही फोत्तू लगाया है जबकि करीब बीस फोटो लिए थे,उनके फोटोग्राफी-हुनर को दिखाने के लिए यह भी ज़रूरी है !बाकी चेला तो चूं-चूं का मुरब्बा ही तैयार कर सकता है,आपसे इस मामले में कोई होड़ नहीं |थोड़ी ही सही ,'पठनीयता' के लिए आभार !
वाह बढ़िया रही मुलाक़ात … मैं मिल नहीं पाया हूँ अब तक सतीश जी से पर फोन पर काफी बातें हुई है … काफी स्नेही है … उम्मीद है मेरी भी जल्द मुलाक़ात होगी !इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार – आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर – पधारें – और डालें एक नज़र – यह अंदर की बात है … ब्लॉग बुलेटिन
सुंदर समीक्षा , सतीश जी को बधाई
यह पुस्तक मैंने भी पढ़ी है …..समीक्षा तो नहीं कहूंगी पर हाँ पुस्तक परिचय ज़रूर लिखा जायेगा …
आपका स्नेह याद है , जब भी दिल्ली आयें फिर मिलेंगे !
मास्साब हर क्षेत्र में मास्साब ही रहेंगे अन्ना भाई !आभार आपका …
दो सरल व्यक्तियों की मुलाकात का सरल विवरण पढकर अच्छा लगा। विडियो क्लिप भी सुना जा रहा है, भले ही आवाज़ स्टुडियो क्वालिटी की न हो मगर हमने बचपन में शॉर्ट वेव रेडियो बहुत सुना है उसके मुकाबले आवाज़ बहुत साफ़ लगी। सतीश जी की कवितायें और मधुर स्पष्टवादिता सदा ही प्रभावित करती है।
अरुण चंद्र रॉय का ही आभारी हूँ , यह पुस्तक उनके परिश्रम का फल है ! शुक्रिया आपका !
संतोष त्रिवेदी जी का आभार …उनकी इस पोस्ट पर महत्वपूर्ण लोगों के कमेन्ट देखकर लगता है पुस्तक प्रकाशन सफल हो गया! आभार गुरुजनों का …
" मेरे गीत " का कवर पेज खूबसूरत है . रिश्तों को समर्पित सरल स्वभाव की बानगी गीतों में भी है. बधाई एवं शुभकामनायें !
मुलाकात के रोचक वर्णन के साथ पुस्तक समीक्षा अच्छी लगी . गुरु देव की बातों पर मत जाइये. लगता है उनकी भी आने वाली है , जिसके लिए आपको तैयार कर रहे हैं . :)पुस्तक है ही इतनी अच्छी की कोई भी समीक्षा सम्पूर्ण नहीं लगेगी .लेकिन यह दिल्ली आवास क्या कोई गुप्त स्थान है जिसके बारे में तो हमें भी नहीं पता था . 🙂
….आपका एक और नया रूप ! वाकई बहुत अच्छी समीक्षा लिखी है आपने . पुस्तक पढ़ने को प्रेरित करती हुई …
…ज़रूर आपको पढ़वायेंगे !आभार
सतीश जी से हमारा भी एक बार मिलना हुआ है रोहतक में हम उन लम्हे मैं कभी भूल नहीं पाए आज तकऔर दोबारा कब मिलना होता है पता नहीं ….बहुत ही जिंदादिल इंसान है सतीश जी उन्होंने हमेशा ही मेरा उत्साह बढाया है…..!!!मेरी और से सतीश जी को बहुत बहुत बहुत बधाई !संजय भास्कर
यह सही है कि अभी भी पुस्तक की सम्पूर्ण-समीक्षा बाकी है |…गुप्त-ठिकाने का पता आप सतीशजी से फ़ोन द्वारा पूछ सकते हैं !!
…यह आपका सहज-स्नेह है |
…हौसला-अफ़जाई के लिए आभार |
आभार शिवम भाई !
वाह शाहनवाज वाह |
…शुक्रिया दोनों दोस्तों का !
मुझसे जितना बन पड़ा किया,आपका आभार |…अगर वह कैमरा आपके हाथ लग जाए तो सच में ,क़यामत ही आ जायेगी !
…जब चरम पर पहुँच जाए,बता देना,किताब मिल जायेगी |
आभार संजय भाई |
अली साब,आप तो शब्दों की भी खाल उधेड़ देते हैं !!बढ़िया पैनी-निगाह आपकी |
आभार रश्मि दी |
सुज्ञ जी ,स्नेह के लिए आभार |
…चलिए जो आया,उसी से मजे लीजिए |आभार
..सुशील जी शुक्रिया |
शुक्रिया मोनिका जी !
…उम्मीद करता हूँ कि आप दोनों जल्द मिलें |
kuch log aise hote hain ……. jahan khare hon log-bag jaikare ka horshor macha dete hain…..unki sarlta/sahajta/nirmalta unke/mere geet mebhara para hai….aapne ye sameeksha dil se likha dildar bhai ke liye…….apka abhar..ek prati ki pratiksha apekshit hai……..pranam.
…संजय भाई ,आपकी बात सतीशजी ज़रूर सुनेंगे !
…आभार आपका !
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति … आदरणीय सतीश जी को बहुत-बहुत बधाई आपको अनंत शुभकामनाएं
विभिन्न भावों से भरे, गुनगुने उष्मा भरे गीत!!'मेरेगीत'प्रकाशन पर श्रीयुत्त सतीश जी को बहुत-बहुत बधाई !!निरामिष: शाकाहार संकल्प और पर्यावरण संरक्षण (पर्यावरण दिवस पर विशेष)
बहुत बढ़िया पुस्तक छपी है. इस पुस्तक के प्रकाशन से मैं भी अभिभूत हूं. मेरे लिए यह उपलब्धि है. पुस्तक का कवर जिसकी हर ओर प्रशंशा हो रही है.. को गौरव सक्सेना (सतीश जी के पुत्र) ने तैयर किया है…
संतोष जी आपकी समीक्षा बेहतरीन बन पड़ी है. जो भी पढ़ रहा है, सतीश जी के गीतों की तारीफ़ कर रहा है. भूमिका पढ़कर हमारी आँखे कई बार नम हो गईं…. दिल से लिखी और दिल से छपी गई पुस्तक है यह… "मेरे गीत"….
आभार काजल भाई !
संतोष जी, 'मेरे गीत' कि एक प्रति मुझे भी प्रिय सतीश जी ने सप्रेम भेंट की, (अपने कीमती समय में से कैसे उन्होंने मुझे 'पकड़ा' ये काबले तारीफ है,) पर मेरे में इतना साहस नहीं कि उसकी समीक्षा लिख सकूं, गीत पढते समय सकूं देते हैं, यही लेखक सफल हुआ है.बाकि प्रोडक्टशन बहुत बढिया है, उसके लिए अरुण जी को भी बधाई.
अरुण राय जी शुक्रिया !
सतीश जी को पढ़ना सदा अच्छा लगता हैदुर्भाग्य से 'मेरे गीत' तक नहीं पहुँच पाया हूँ.
आप अपना पता भेर्जें …
सतीश जी के कृतित्व से पहले ही परिचय है और उनके गीत हमेशा दिल को छू जाते हैं…उनकी पुस्तक 'मेरे गीत' की समीक्षा बहुत अच्छी लगी…सतीश जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें !
अरे …जब कहोगे तब मिलेंगे संजय ! आभार आपका !
शुक्रिया सदा जी …
आपका स्वागत है …आभार !
कृपया पता भेज दें वर्मा जी आदेश का पालन होगा !…
शुक्रिया कैलाश भाई …
लगता है कैमरा लेकर बनारस आना पड़ेगा …
कुछ दिल वाले दिलदार मिले कुछ बड़े, दिलजले यार मिलेकुछ बिना कहे आते जाते घर बार लुटाते, यार मिले !मेरे घर पर भरी दुपहरी,जो पग आये वे, मृदु गीत !नेह के आगे शीतल जल से, चरण पखारें मेरे गीत !
इस दुनियां में मुझसे बेहतरगली गली, लिखते है गीत ! फिर भी जो दरवाजे आयें , उन्हें नमन करते हैं गीत !एक बार गाकर जानोगे, क्यों दिल को छू जाते गीत !पहली बार मिलन अपनों का, कब से आस लगाएं गीत !
अक्सर अपने ही कामों से हम अपनी पहचान कराते नस्लें अपने खानदान की आते जाते खुद कह जाते ! चेहरे पर मुस्कान,ह्रदय से गाली देते अक्सर मीत !कौन किसे सम्मानित करता,खूब जानते मेरे गीत !
सतीश जी को पुस्तक के प्रकाशन के लिये बधाई! किताब के बारे में अच्छी तरह से लिखा। फोटो भी चकाचक हैं।वीडियो भी सुनाई तो दे रहा है। सक्सेनाजी की क्यूट आवाज सुनाई दे रही है कविता पढ़ते हुये। वीडियो की क्वालिटी इत्ती भी खराब नहीं कि इसे हटाया जाये। कम्प्यूटर और हेडफ़ोन के वाल्यूम फ़ुल पर करके सुनने पर साफ़ सुनाई देती है आवाज! फ़िर से बधाई! किताब के विमोचन का इंतजार है।
आदरणीय अली सा…बरास्ते मेरे सतीशजी ने आपको जवाब चस्पा कर दिए हैं,उम्मीद है अच्छे लगेंगे !आभार सतीशजी,इस प्यार के लिए !
दीपक जी आभार !
…क्या बात है..? लगता है आज मूड बिलकुल चकाचक है |
इस चकाचक मूड में अनूप जी ??अल्लाह खैर करे ..
मैंने कहा था ना कि सतीश जी बहुतै हुसियार हैं ! अब देखों ना दोस्ती यारी पे भी :)बहरहाल मैं अपने दावे पे अब भी कायम हूं ,श्रीमती सक्सेना को समर्पित गीत , हम बात तुम्हारी क्यों माने , उनकी कालजयी रचना है 🙂
वाह! बढ़िया रही मुलाक़ातहर्ष उल्लास बना रहेशुभकामनाएं
अल्लाह तो खैर कर रहा है, बस आप का इन्तेज़ार है सक्सेना साहेब.
पाबला जी,आपका करम बना रहे…आभार !